Spread the love

किसान सम्मान निधि योजना के तहत अब सभी किसानों को सालाना 6,000 रुपए मिलेंगे। साथ ही उनके लिए पेंशन योजना का ऐलान भी किया गया है। लेकिन क्या इससे किसानों की मौजूदा हालत में सुधार हो पाएगा? कृषि संकट का समाधान, किसानों की पैदावार और उनके आर्थिक हालात को बेहतर बनाना सरकार की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। यह संकट इतना विकराल रूप धारण कर चुका है कि उसमें सुधार के लिए सरकार को तुरंत उपाय सोचने होंगे। नीति आयोग के अनुसार पिछले दो साल यानी 2017-18 में किसानों की आय में वास्तविक बढ़ोतरी लगभग शून्य हुई है तथा उसके पिछले पांच सालों में हर साल आधा प्रतिशत से भी कम बढ़ोतरी हुई है। यानी सात सालों से किसानों की आय में वृद्धि न के बराबर हुई है।

देश में किसानों की स्थिति सुधारने के लिए सबसे बड़ी जरूरत है खेती की बुनियादी सुविधाओं पर खर्च किया जाए। आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक 2000-2017 के बीच में किसानों को 45 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ क्योंकि उन्हें उनकी फसलों का समुचित मूल्य नहीं मिला। कई दशकों से हम विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और अन्य वैश्विक संस्थानों की आर्थिक सोच के मुताबिक अपनी वित्तीय नीतियां बनाते रहे और उन नीतियों को व्यावहारिक बनाने के लिए कृषि को हाशिये पर रखा जाता रहा है। 2016 के आर्थिक सर्वे में 17 राज्यों में किसान परिवार की आय 20 हजार रुपए सालाना से कम रही यानी 1,700 रुपए मासिक या लगभग 50 रुपए दैनिक। सवाल है कि इस आय में कोई परिवार कैसे पलता होगा? खेती में पैसा नहीं है, उसके मजदूरों के पास काम नहीं है। ऐसे में दो चीजें करने की जरूरत है। लोगों को गांव से निकाल कर शहर में लाना यह विकास का मॉडल नहीं है। किसानों के लिए कृषि से इतर स्थानीय रोजगार योजनाएं बनाकर उन्हें संपन्न करने की जरूरत है। इससे मांग पैदा होगी। उद्योग या एफएमसीजी उत्पादों की मांग बढ़ेगी और उद्योग का पहिया स्वत: चल पड़ेगा।

सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को उद्योग के लिए ‘बूस्टर डोज’ बताया जा रहा है लेकिन यदि गांव पर ध्यान दिया गया तो वह वृद्धि का ‘रॉकेट डोज’ होगा क्योंकि उससे इतनी मांग बढ़ेगी कि हमारी अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से दौड़ेगी। अभी हम सात फीसद के आसपास हैं, वैसा करने से हम चौदह फीसद तक भी पहुंच सकते हैं। उद्योग के लिए तो ‘ईज आॅफ डूइंग बिजनेस’ की बात की जाती है लेकिन किसानों के लिए ‘ईज आॅफ डूइंग फार्मिंग’ की बात क्यों नहीं की जाती? मंडी हो, उत्पादन हो या प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में मुआवजा ही लेना हो, किसानों को हर कदम पर दिक्कतें आती हैं। उनकी ये समस्याएं खत्म हो जाएंगी तो अर्थव्यवस्था समृद्ध होगी। यानी कृषि को संकट से उबारने के लिए सरकार को इस क्षेत्र में निवेश, जल संकट, आधारभूत सुविधाओं के साथ ही लघु अवधि और दीर्घावधि वाले कई बड़े फैसले लेने पड़ेंगे। कुल मिला कर कृषि में सुधार का रास्ता गांव के रास्ते ही जाएगा।
’संजीव कुमार, सहारनपुर, उत्तर प्रदेश

मुखपृष्ठ राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय खेल विचार राज्य मनोरंजन


Spread the love

By udaen

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *