‘विकसित भारत 2047 – विज़न ऑफ न्यू इंडिया 3.0’ कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति के संबोधन का मूल पाठ (अंश)
विकसित भारत अब सपना नहीं है, विकसित भारत लक्ष्य है, और चुनौतीपूर्ण लक्ष्य है। और यह लक्ष्य हम हासिल करके रहेंगे, यह हमारा संकल्प है। आखिर यह सब संभव कैसे हुआ? एक बहुत बड़ी सोच थी, और सबसे पहले सोच यह थी कि गरीब की दस्तक बैंकिंग व्यवस्था में होनी चाहिए। अकल्पनीय सोच! कम से कम समय में 50 करोड़ लोग बैंकिंग व्यवस्था से जुड़ गए। यह कोई छोटी बात नहीं है, और इसी का नतीजा है कि हमारी व्यवस्था में पारदर्शिता आई है, उत्तरदायित्व आया है। उस जमाने को हम याद करते हैं, एक युवा प्रधानमंत्री की पीड़ा थी—”1 रुपया भेजता हूं, 10 पैसे पहुंचता हैं।” अब 1 रुपया , 1 रुपया पहुंचता है। बिना बिचौलिए के पहुंचता है, बिना मिडिलमैन के पहुंचता है, बिना किसी कट के पहुंचता है, और सीधा उसके अकाउंट में जाता है। कभी सोचा था? एक साल में चार एयरपोर्ट नए बन रहे हैं। मेट्रो सिस्टम बन रहा है और साल को छोड़ दो, प्रतिदिन पर आ जाइए—14 किलोमीटर राजमार्ग और 6 किलोमीटर रेलवे लाइन, कितनी ऊर्जा देखिए! पहले सोचते थे कि गांव में बिजली आ गई क्या? चाहे एक घर हो, प्रधानमंत्री ने सोच बदला, सब गांव में बिजली जाएगी और सब घर जाएगी । पहले International Monetary Fund, World Bank, World Economic Forum हमें क्या कहते थे? आजकल हमारी प्रशंसा करते हुए थकते नहीं हैं। Indian Economy and Infrastructure and Digital Infrastructure, Digital penetration…