मानहानि कानून के बारे में दिल्ली हाई कोर्ट का कहना है कि इसका इस्तेमाल मीडिया को दबाने अथवा उस पर पाबंदी लगाने के लिए नहीं किया जा सकता है। इसके साथ ही न्यायमूर्ति राजीव सहाय एंडलॉ ने केंद्र सरकार के उपक्रम इंडियन पोटाश लिमिटेड (आईपीएल) द्वारा दायर की गई मानहानि की याचिका को खारिज कर दिया है। हालांकि कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मानहानि कानून में संविधान द्वारा प्रदत्त वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अनुचित इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने की क्षमता है, लेकिन यह सुनिश्चित करना भी अदालत का कर्तव्य है कि मानहानि कानून का दुरुपयोग न किया जाए।
दरअसल, एक न्यूज चैनल ने वर्ष 2007 में इस कंपनी द्वारा उत्तर प्रदेश में कथित रूप से चलाए जा रहे मिलावटी दूध के कारोबार का पर्दाफाश किया था। कंपनी ने 27-28 अप्रैल 2007 को एक रिपोर्ट प्रसारित की थी, जिसमें एक स्टिंग के जरिये दिखाया गया था कि कंपनी कथित तौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सिथेंटिक दूध बेच रही है।
इसके बाद कंपनी ने इस चैनल के खिलाफ मानहानि का मामला दर्ज कराया था। कंपनी ने क्षतिपूर्ति के रूप में न्यूज चैनल व संपादक से 11 करोड़ रुपए का मुआवजा भी मांगा था। इस मामले में टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि चूंकि यह मामला दूध से जुड़ा है, जो सीधे स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, इसलिए यह जनहित का मुद्दा है और सिंथेटिक दूध के काले कारोबार का भंडाफोड़ स्टिंग ऑपरेशन के जरिये ही किया जा सकता है। इसके अलावा याचिका कर्ता ने इस खुलासे से उसे हुए नुकसान के बारे में भी कोई साक्ष्य पेश नहीं किया है। ऐसे में उसे मुआवजा दिए जाने का आदेश नहीं दिया जा सकता है।
वहीं, स्टिंग ऑपरेशन के मामले में हाई कोर्ट ने कहा है कि यह समाज का एक अंग है और यह समाज में हो रहे गलत कामों को उजागर करने में मददगार है। कोर्ट का कहना था कि चूंकि गलत कामों को काफी छिपाकर किया जाता है, इसलिए ऐसे मामलों का स्टिंग ऑपरेशन के जरिये ही पर्दाफाश किया जा सकता है।
राफेल रक्षा सौदे के मामले में सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले का जिक्र करते हुए हाई कोर्ट का यह भी कहना था कि सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून का अधिकार गोपनीय दस्तावेज अधिनियम से भी ऊपर है। हाई कोर्ट का यह भी कहना था कि वर्तमान दौर में सूचना का अधिकार कानून के कारण सरकार से जुड़ी कई खास जानकारियां सामने आई हैं, जिससे बेहतर प्रशासन चलाने में काफी मदद मिली है।