सैनिटरी पैड्स, जिसका नाम सुनकर ही लोग नाक भौंह सिकोड़ने लगते हैं क्योंकि ये महिलाओं के मासिक धर्म से जुड़ा है तो समाज सैनिटरी पैड्स को भी उन्हीं का ही हिस्सा मानते हैं। महिलाओं के सामने सैनिटरी पैड का नाम तक लेने में शर्म महसूस करने वाले पुरुषों को शायद ये ना पता हो कि पहली बार ये पैड महिलाओं के लिए नहीं बल्कि पुरुषों के लिए ही बनाए गए थे।
माय पीरियड ब्लॉग’ की एक पोस्ट की मानें तो सबसे पहले सैनिटरी पैड का प्रयोग प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान किया गया था। फ्रांस की नर्सों ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान घायल हुए सैनिकों की एक्सेसिव ब्लीडिंग को रोकने के लिए इसको पहली बार तैयार किया था। कहते हैं इस नैपकीन को सैनिकों को गोलियों से बचाने वाले बेंजमिन फ्रेंकलिन के एक आविष्कार से प्रेरित होकर पहली बार बनाया गया था।

इन नैपकिन्स को बनाते हुए ध्यान रखा गया था कि ये आसानी से खून को सोख सकें और एक बार प्रयोग के बाद इसको आसानी से नष्ट किया (डिस्पोज) जा सके। इससे पहले कोई भी सैनिटरी पैड का प्रयोग नहीं करता था। जब फ्रांस में सैनिकों के लिए सैनिटरी पैड तैयार किए गए तो उसके बाद फ्रांस में काम करने वाली अमेरिकी नर्सों ने इन्हें पीरियड्स के दौरान यूज करना भी शुरू कर दिया।
इनको रुई की तरह के दूसरे फाइबर को अब्जॉर्बेट लाइनर से कवर करके तैयार किया जाता था, लेकिन ये पैड उस दौरान इतने महंगे होते थे कि महिलाओं के लिए खरीदना कोसों दूर था। लिहाजा ऊंचे तबके की महिलाएं ही सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती थीं।

सांकेतिक तस्वीर – फोटो : File Photo
समय के साथ सैनिटरी नैपकिन के रूप में कई बदलाव हुए। धीरे-धीरे ये आम महिलाओं के लिए भी उपलब्ध होने लगे। हालांकि, आज भी हमारे देश के कई स्थानों में महिलाएं अच्छे सैनेटरी पैड खरीदने तक के पैसे नहीं कमा पाती हैं और वह इसको अपनी ही सुरक्षा, जरुरत के लिए प्रयोग नहीं कर पा रही हैं।

सांकेतिक तस्वीर – फोटो : File Photo
आज भी सैनिटरी नैपकिन के मामले में ही नहीं बल्कि पीरियड्स को भी हमारे समाज में कुछ अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता है। यह एक ऐसा शब्द, जिस पर पुरुष क्या महिलाएं भी बात करने से हिचकिचाती हैं। यह शब्द सुनते ही सभी असहज होने लगते हैं। यहां तक कि अपनी शारीरिक प्रक्रिया के बारे में खुद महिलाएं भी खुलकर बात नहीं कर सकती हैं।