देहरादून जिले के रायपुर ब्लॉक के सिला गांव के रहने वाले हैं। छह साल की छोटी उम्र से लोकगीत गाना शुरू कर दिया था। 1988 से ऑल इंडिया रेडियो से जुड़ गए थे। 150 से ज्यादा एलबम निकाल चुके हैं। ढोल सागर में पारंगत माने जाते हैं। 20 देशों को सिखा रहे पहाड़ी लोककला, बहुमुखी प्रतिभा का धनी है रीतम भरतवाण दुनिया भर के 20 से अधिक देशों में अपनी जागर गायकी का जादू बिखेर चुके हैं। अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा, जर्मनी, मस्कट, ओमान, दुबई समेत कई अन्य स्थानों पर वह मंचों पर लाइव प्रस्तुति दे चुके हैं। जागर गायन के साथ ही वह ढोल सागर के भी बड़े ज्ञाता हैं। जागर गायन के साथ-साथ वे मंच पर ढोल वादन की अपनी विशिष्ट कला का भी प्रदर्शन करते हैं।
प्रीतम भरतवाण एक अच्छे जागर गायक और ढोल वादक के साथ ही अच्छे लेखक भी हैं। साथ ही उन्हें दमाऊ, हुड़का और डौंर थकुली बजाने में भी महारत हासिल है। जागरों के साथ ही उन्होंने लोकगीत, घुयांल और पारंपरिक पवाणों को भी नया जीवन देने का काम किया है।
प्रीतम भरत्वाण ने कहा कि लोक कलाकार का सम्मान उत्तराखंड की लोककला का सम्मान है। मेरे जीवन का उद्देश्य उत्तराखंड की लोक कला एवं जागर का संरक्षण है, ताकि आने वाली पीढ़ी को सांस्कृतिक धरोहर से रूबरू कराया जा सके।