नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष और जाने-माने अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया ने नई सरकार को राजकोषीय मजबूती के साथ सरकारी कंपनियों के आक्रामक निजीकरण का सुझाव दिया है। उन्होंने केंद्रीय मंत्रालयों की संख्या घ्ज्ञटाने की वकालत करते हुए कहा कि आर्थिक वृद्धि दर बढ़ाने के लिए भारत को अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौतों पर वार्ता को नई इकाई बनानी होगी।जनवरी 2015 से अगस्त 2017 तक नीति आयोग के उपाध्यक्ष रहे पनगढ़िया ने नई सरकार के गठन के बाद उसकी प्राथमिकताओं पर जवाब दिया। कहा, आपको राजकोषीय मजबूती के मामले में दृढ़ इच्छाशक्ति दिखानी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि निजी क्षेत्र को निवेश के लिए धन की तंगी न हो। दूसरा महत्वपूर्ण काम सरकार का स्वरूप अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाने के लिए केंद्रीय मंत्रालयों की संख्या घटाकर 30 करना है, जो अभी 50 से अधिक है।
पनगढ़िया ने कहा कि सार्वजनिक कंपनियों के निजीकरण पर आक्रामक रुख अपनाना चाहिए और सप्ताह एक उपक्रम का निजीकरण होना चाहिए। करीब दो दर्जन कंपनियों के निजीकरण की मंजूरी मंत्रिमंडल से पहले ही मिल चुकी है। ऐसे में यह कदम नई सरकार के लिए संभव है। बड़े सुधार के सवाल पर उन्होंने कहा कि सरकार को अध्यादेश लाकर बैंकिंग नियमन कानून में संशोधन करना चाहिए, ताकि रिजर्व बैंक के 12 फरवरी, 2018 के सर्कुलर को दोबारा लागू किया जा सके। यह सर्कुलर भविष्य में बैंकों में एनपीए पैदा होने पर रोक लगाता है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने इस साल रद्द कर दिया था। इसके सााि ही बैंकों में नई पूंजी भी डालनी होगी।
अमेरिकी कंपनियों को पारदर्शिता की उम्मीद
चीन के साथ बढ़ते व्यापार युद्ध के चलते अमेरिकी कंपनियों को भारत की नई सरकार के गठन के बाद नीतियों में ज्यादा पारदर्शिता आने की उम्मीद है। अमेरिका-भारत रणनीतिक और भागीदारी मंच के अध्यक्ष मुकेश अघी का कहना है कि नीति रूपरेखा तैयार करने में अमेरिकी कंपनियां पारदर्शिता के साथ बेहतर सामंजस्य चाहती हैं। भारत के पास अभी अमेरिकी और यूरोपीय कंपनियों को आकर्षित करने का बेहतरीन अवसर है।
अगर यहां नीतियों में स्पष्टता नहीं रहेगी तो ये कंपनियां वियतनाम और कंबोडिया जैसे देशों की तरफ आकर्षित हों जाएंगी। वाशिंगटन स्थित वैश्विक विकास केंद्र के नीति मामलों के जानकार अनित मुखर्जी का कहना है कि जो भी सरकार आएगी, उसे गरीबी दूर करने और आर्थिक वृद्धि तेज करने के लिए सुधारों पर जोर देना होगा।