Spread the love

कम जमीन और कम समय में ज्यादा कमाई के लिए कृषि वैज्ञानिक किसानों को सब्जियों की खेती की सलाह देते हैं। सब्जियों की फसल 30 से लेकर 70 दिन में तैयार होती हैं और अमूमन रोज पैसा देती हैं। भारत में इस वक्त करीब 40 तरह की सब्जियों की खेती हो रही है, इन्हीं में एक है चप्पन कद्दू। आम कद्दू के मुकाबले ये जल्दी पैदा होता है और महंगा बिकता है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा) नई दिल्ली के प्रधान वैज्ञानिक और सब्जी विशेषज्ञ डॉ. श्रीधर चप्पन कद्दू को मुनाफे वाली फसल बताते है। उनके मुताबिक ये पॉलीहाउस और खुले खेत में दोनों जगहों पर आसानी हो सकती है। “चप्पन कद्दू पहले विदेशों में ही उगाया जाता था लेकिन पिछले कुछ वर्षों में भारत में इसकी खेती से बढ़ी है। इसे हीरो-हीरोइन खूब पसंद करते हैं, क्योंकि इसमें कुछ ऐसे गुण होते हैं जो वजन घटाने में सहायक होते हैं।” चप्पन कद्दू कई किस्मों का होता है। इनमें हरा लंबा वाला, पीला वाला और पीला गोल कद्दू शामिल है। डॉ. श्रीधर बताते हैं, “पीले रंग वाले जुकनी भी बोलते हैं। इसे फिल्म स्टार खूब पसंद करते हैं। कद्दू वर्गीय सब्जियों में सिर्फ नमक डालकर खाने से वेट कंट्रोल (वजन नियंत्रण) में मदद मिलती है। लंबे हरे वाले जिसमें धारियां होती हैं, उसे ऑस्ट्रेलियन ग्रीन बोलते हं। जबिक पीले दूसरी पीली गोल वाली आईसीआआर की वैरायटी है। आईसीआईआप की नई वैरायटी पूसा पसंद खूब चल रही है। इसके फल टिंडे से थोड़ा बड़े होते हैं।” चप्पन कद्दू या जुकनी के पौधे झाडियों जैसे होते हैं। इसमें बेल नहीं होती है और ये मुश्किल से डेढ़ से 3 फीट के होते हैं। इनमें एक पौधे में 5-8 फल आते हैं। सब्जी विशेषज्ञ डॉ. श्रीधर बताते हैं, “आस्ट्रेलियन ग्रीन 4-5 और पूसा पसंद के एक पौधे में 7-8 फल लगते हैं। इसकी बुवाई के लिए नवंबर-दिसंबर में खेत तैयार कर मेड़ से मेड़ की दूरी 75 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी भी 75 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। एक एकड़ में करीब 2 किलो बीज लगते हैं। ये फसल 60-70 दिन में खत्म हो जाती है।” ये दो तरह का होता है। हरे वाले को आस्ट्रेलियन ग्रीन बोलते हैं। जबकि पीली वाली देसी वैरायटी है, इसे जुकुनी भी बोलते हैं। इसे फिल्म स्टार खूब पसंद करते हैं। कद्दू वर्गीय सब्जियों में सिर्फ नमक डालकर खाने से वेट कंट्रोल (वजन नियंत्रण) में मदद मिलती है। डॉ. श्रीधर, प्रधान वैज्ञानिक और सब्जी विशेषज्ञ, ICAR किसानों को चाहिए खेती की मिट्टी की जांच जरुर करा लें, ताकि अनावश्यक उर्वरक न डालनी पड़े। खेत में गोबर की खाद डालने से उत्पादन अच्छा होता है। कई कृषि जानकार किसानों को 80-80 सेंटीमीटर पर भी बोने की सलाह देते हैं। इस फसल में बीज और सिंचाई का ही ज्यादा खर्च होता है। ऑफ सीजन में लगाने पर पौधों को पाले से बचाना होता है। अगर किसान पॉलीहाउस में खेती कर रहा है तो कोई बात नहीं खुले खेत में करने पर जल्दी फसल के लिए चाहिए की पौधों को बीज बोने के करीब डेढ़ महीने तक ढ़करकर रखे। पॉलीहाउस की अस्थाई संरचना में ये पॉलीथीन बाद में हटा देनी चाहिए।” डॉ. श्रीधर किसानों को सलाह देते हैं। एक से डेढ़ महीने में पौधे में फल आने लगते हैं। नवंबर-दिसंबर में बोई गई फसल के लिए उस वक्त तक पर्याप्त गर्मी भी होने लगती है। जो पौधों को बढ़ने में मदद करती है। ऐसे सर्दियों में बोई फसल अप्रैल तक खत्म हो जाती है। उत्तर प्रदेश के सीतापुर समेत कई जिलों में किसान हरे और लंबे वाले कद्दू की खेती करते हैं। ये भी पढ़ें-ब्रोकली, ब्रुसेल्स स्प्राउट्स, लेट्यूस ये सारी यूरोपियन सब्जियां हैं, इसलिए ये विदेशी सब्जियों में गिनी जाती हैं। ये काफी महंगी बिकती हैं।


Spread the love

By udaen

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *