__धूमधाम से मनाया गया गंगा- यमुना घाटी में देवलांग उत्तरकाशी जिले के विभिन्न गांवों में लोकपर्व देवलांग (दीपावली) धूमधाम से मनाया गया। रवांई घाटी के गैर, गंगटाड़ी, कुथनौर में सात दिसंबर और गंगा घाटी के धनारी पुजार गांव में आठ दिसंबर को देवलांग मनाया गया। देवलांग पर्व एक अलग तरह की मंगसीर की बग्वाल का उत्सव है।
देवलांग पर्व मनाने को लेकर गंगा घाटी व यमुना घाटी में अलग-अलग मान्यताएं हैं। यमुनाघाटी की एक मान्यता के अनुसार महाभारत के युद्ध में रवांई घाटी के बनाल को भी शामिल होने का निमंत्रण प्राप्त हुआ था। बनाल का भी बंटवारा दो तोकों में हुआ, जो क्षेत्र कौरवों के साथ गया वो सांठी और जो पांडवों के साथ गया, वो पांशायी कहलाया। उस धर्मयुद्ध के अंश को आज भी बनाल के उन महान पूर्वजों के वंशजों ने त्योहार के रूप मे संजोए रखा है। देवलांग पर्व की पहली रात्रि को अंतिम पहर में दोनों तोकों के लोग अराध्य देव राजा रघुनाथ के मंदिर पहुंचे, जहां उन्होंने सांकेतिक युद्धाभ्यास नृत्य किया। जिसके बाद देववृक्ष पर बांधे गए छिलकों में आग लगाई गई। रवांई घाटी में यह पर्व गैर, गंगटाड़ी, स्वील व कुथनौर में मनाया जाता है। जबकि, गंगा घाटी में देवलांग पर्व पर देववृक्षों को अमावस्या की रात को काटा जाता है, जिसके बाद इस वृक्ष की रात भर पूजा-अर्चना होती है। सुबह पेड़ को गांव में लगाया जाता है। दोपहर के बाद देवलांग की पूजा शुरू होती है। देव वृक्ष से महिलाएं मन्नतें मांगती हैं। इस पूरे क्षेत्र के लोगों का यह भी विश्वास है कि जो इस पर्व पर देववृक्ष से सच्चे मन से कुछ मांगता है तो वह जरूर पूरा होता है।