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नई दिल्ली : केंद्र और राज्य सरकारें भले ही किसानों की मदद के लिए तमाम जतन कर रही हों, लेकिन अधिकारी अपने पुराने ढर्रे पर कायम दिख रहे हैं. ताजा मामला उत्तर प्रदेश का है. यहां गरीब किसानों को बांटने के लिए कई क्विंटल बीज खरीद कर उनको मुहैया करवाई गई है, लेकिन जांच में पता चला कि असल में यह यह खरीद व आपूर्ति महज कागजों में हुई है. किसानों को इससे कुछ नहीं मिला. धोखाधड़ी के इस मामले में बीज खरीद की फर्जी रसीदों पर अधिकारियों के हस्ताक्षर व सरकार की मुहर का स्पष्ट तौर पर इस्तेमाल किया गया था.
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शुरुआती जांच में बताया गया है कि इस घोटाले के अधिकांश हिस्से पूर्व मुख्यमंत्री मायावती और अखिलेश यादव के कार्यकाल के दौरान अंजाम दिया गया है. अब तक 16.56 करोड़ रुपये की फर्जी रसीदों का पता चला है। यह इस बड़े घोटाले का अंश मात्र है. सरकारी धन के इस दुरुपयोग के संबंध में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने आर्थिक अपराध शाखा को यह पता लगाने का निर्देश दिया है कि बीज घोटाला सिर्फ कानपुर (सरकारी गोदाम) में ही हुआ या उत्तर प्रदेश के दूसरे जिलों में भी ऐसा हुआ है.

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कृषि विभाग के वरिष्ठ अधिकारी उमाशंकर पाठक ने कहा कि कानपुर पुलिस ने उत्तर बीज एवं विकास निगम की जांच के आधार पर पहले ही प्राथमिकी दर्ज की है. यह घोटाला पिछले साल तब उजागर हुआ जब बीज निगम ने भुगतान के लिए अपना बिल कृषि विभाग के पास भेजा. जांच के दौरान 99 लाख रुपये का एक फर्जी बिल पाया गया. बाद में घोटाले की विभागीय जांच शुरू की गई. सूत्रों ने बताया कि पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के कार्यकाल (2007-2012) और उसके बाद सत्ता में आए अखिलेश यादव के कार्यकाल (2012-2017) के दौरान 16.16 करोड़ रुपये के बिल फर्जी पाए गए.

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एक अधिकारी ने बताया, “हम मामले में किसी मंत्री या शीर्ष नौकरशाह की संलिप्तता से इनकार नहीं कर सकते हैं. ऐसा लगता है कि शीर्ष स्तर पर मिलीभगत थी”. सूत्रों ने बताया कि जांच के दौरान पाया गया कि 9080 और 7188 दो सीरीज की संख्या वाली रसीद फर्जी थीं. यह जांच कानपुर स्थित गोदाम पर केंद्रित थी. उन्होंने बताया कि प्रमुख अधिकारियों और भंडार के निचले स्तर के कर्मचारियों ने सिर्फ कागजों पर बीजों की खरीद और आपूर्ति दिखाई. बाद में वरिष्ठ अधिकारियों ने बिलों को अग्रसारित किया और भुगतान किया गया.


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By udaen

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