नई दिल्ली। वैज्ञानिक एवं औद्यौगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) अपनी तीन दर्जन प्रयोगशालाओं के जरिये नई आयुर्वेदिक दवाएं खोजने के एक बड़े कार्यक्रम की शुरुआत करने जा रहा है। इसके लिए सीएसआइआर ने आयुष विभाग के साथ समझौता किया है। उम्मीद है कि अत्याधुनिक प्रयोगशालाओं और चोटी के वैज्ञानिकों का साथ मिलने के बाद लाइलाज बीमारियों के लिए प्रभावी आयुर्वेदिक दवाओं का विकास हो सकेगा।
आयुष मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सीएसआइआर की प्रयोगशालाओं में पहले भी आयुर्वेद पर काम हुए हैं और उसके नतीजे काफी उत्साहजनक रहे हैं। लखनऊ स्थित सीएसआइआर के तहत आने वाली नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनबीआरआइ) ने बीजीआर-34 नाम की दवा विकसित की है, जो मधुमेह के इलाज में अपनी पहचान बना चुकी है। उन्होंने कहा कि सीएसआइआर के वैज्ञानिकों का साथ मिलने के बाद आगे भी इसी तरह की नई दवाएं विकसित करने में सफलता मिल सकती है।टीकेडीएल में मौजूद फार्मूले बनेंगे सहायक
भारत के प्राचीन नुस्खों को विदेश में पेटेंट करने से रोकने की दिशा में भी सीएसआइआर काफी काम कर चुका है। इसके तहत सीएसआइआर और आयुष विभाग ने आयुर्वेद पर परंपरागत ज्ञान के संबंध में एक डिजिटल लाइब्रेरी तैयार की थी। इसे ट्रेडिशनल नॉलेज डिजिटल लाइब्रेरी (टीकेडीएल) कहा जाता है। इस डिजिटल लाइब्रेरी में आयुर्वेद के सभी फार्मूले और उससे जुड़ी जानकारियां कई विदेशी भाषाओं में उपलब्ध हैं। इससे किसी भी देश में आयुर्वेद के किसी नुस्खे पर पेटेंट देने से पहले उसका तस्दीक करना आसान हो गया है। जाहिर है टीकेडीएल के अस्तित्व में आने के बाद आयुर्वेद के नुस्खों पर विदेशों में होने वाले पेटेंट पर रोक लग गई है। वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि टीकेडीएल के रूप में सीएसआइआर के पास पहले से मौजूद इन्हीं फार्मूलों को खंगालकर नई दवाइयां विकसित की जाएंगी।